साहिल पर अक्सर कुछ इस तरह के लोग मिल ही जाते हैं|
जिनका सिर्फ़ काम ही लोगों की कस्तियों को डुबाना होता है|
ना जाने क्यूँ जी जल सा जाता है सोचकर ही ये सब|
जानता हूँ ये सब तो चलता ही रहेगा|
कुछ भी नहीं बदलेगा और अगर बदलेगा भी तो,
सिर्फ़ मांझीऔर साहिल इसके सिवा कुछ भी नहीं|
अक्सर मंज़िल के करीब पहुच कर भी दूर रह जाते हैं|
ना तो फ़ासले ही मिटते हैं, और न ही कुर्वत|
......................................५ अप्रैल, २००५
जिनका सिर्फ़ काम ही लोगों की कस्तियों को डुबाना होता है|
ना जाने क्यूँ जी जल सा जाता है सोचकर ही ये सब|
जानता हूँ ये सब तो चलता ही रहेगा|
कुछ भी नहीं बदलेगा और अगर बदलेगा भी तो,
सिर्फ़ मांझीऔर साहिल इसके सिवा कुछ भी नहीं|
अक्सर मंज़िल के करीब पहुच कर भी दूर रह जाते हैं|
ना तो फ़ासले ही मिटते हैं, और न ही कुर्वत|
......................................५ अप्रैल, २००५